CME on “Managing Upper GI Discomfort in Primary Care”

26 Oct 2025, Kanpur: IMA हैडक्वार्टर के निर्देशानुसार IMA Physicians Learning Academy के अंतर्गत “Back to Back Academics" श्रृंखला में एक शैक्षणिक कार्यक्रम (CME) का आयोजन IMA कानपुर शाखा द्वारा आज दिनांक 26 अक्टूबर 2025 दिन रविवार को सायं 6:00 बजे से स्थानः सेमिनार हॉल, आईएमए भवन, कानपुर में किया गया।

इस शैक्षणिक सत्र का उद्देश्य चिकित्सकों को गैस्ट्रोएंटेरोलॉजी से संबंधित नवीनतम जानकारियों से अवगत कराना था।

विषय एवं वक्ताः

1 उम्र के अनुसार जठरांत्र क्रिया-विज्ञान में बदलाव निदान एवं उपचार पर प्रभाव वक्ताः डॉ. शुभ्रा मिश्रा, एम.डी., डी.एम, (गैस्ट्रोएंटेरोलॉजी)

2 लक्षणों और तंत्रों के बीच सेतुः ऊपरी जठरांत्र असुविधा का प्रबंधन वक्ताः डॉ. ए. सी. अग्रवाल, सीनियर फिजिशियन

आईएमए कानपुर के अध्यक्ष डॉ अनुराग मेहरोत्रा ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की तथा आए हुए सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए इन बीमारि की गम्भीरता के विषय में बताया। कार्यक्रम का संचालन डॉ दीपक श्रीवास्तव वैज्ञानिक सचिव आईएमए कानपुर ने किया तथा अंत में धन्यवाद ज्ञापन आईएमए कानपुर की सचिव डॉ शालिनी मोहन ने दिया।

आज के कार्यक्रम के चेयरपर्सन डॉ मयंक मेहरोत्रा Gastroenterologist रीजेंसी हॉस्पिटल कानपुर तथा डॉ पुनीत पूरी, Gastro सर्जन, कानपुर थे तथा कार्यक्रम के मॉडरेटर विकास मिश्रा पूर्व सचिव आईएमए कानपुर थे ।

आज की CME के प्रथम वक्ता डॉ. शुभ्रा मिश्रा, एम.डी., डी.एम. (गैस्ट्रोएंटेरोलॉजी) ने बताया कि चिकित्सा विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि उम्र बढ़ने के साथ शरीर में होने वाले स्वाभाविक परिवर्तन हमारे पाचन तंत्र (गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल सिस्टम) को भी प्रभावित करते हैं। इन बदलावों के कारण बुजुर्गों में पाचन से जुड़ी बीमारियों की पहचान (डायग्नोसिस) और उनका उपचार (ट्रीटमेंट) दोनों अधिक चुनौतीपूर्ण हो जाते हैं।

बढ़ती उम्र के साथ -

लार का स्राव कम हो जाता है, जिससे भोजन निगलने में कठिनाई होती है।
पेट में एसिड का स्राव घटता है, जिससे भोजन का पाचन धीमा पड़ जाता है।
आंतों की गतिशीलता (motility) कम होने से कब्ज़ आम हो जाती है।
लीवर और अग्न्याशय की क्रियाशीलता घटने से दवाओं का असर और पाचन दोनों प्रभावित होते हैं।
इन शारीरिक परिवर्तनों के कारण बुजुर्गों में गैस, बदहजमी, कब्ज़, और पोषण की कमी जैसी समस्याएँ अधिक देखने को मिलती हैं। कई बार पेट की गंभीर बीमारियाँ, जैसे अल्सर या रक्तस्राव, बिना दर्द के केवल कमजोरी या एनीमिया के रूप में सामने आती हैं, जिससे निदान में देर हो सकती है।

प्रथम वक्ता डॉ. शुभ्रा मिश्रा ने सलाह दी है कि बुजुर्ग व्यक्ति नियमित स्वास्थ्य जांच करवाएं।
संतुलित आहार, पर्याप्त पानी, और हल्का व्यायाम अपनी दिनचर्या में शामिल करें।
किसी भी दवा को बिना चिकित्सकीय परामर्श के न लें, क्योंकि उम्र के साथ दवाओं का असर और दुष्प्रभाव दोनों बढ़ सकते हैं।
यह भी कहा कि इस उम्र में पाचन स्वास्थ्य की देखभाल के लिए परिवार और समाज दोनों को जागरूक होना जरूरी है।

CME के दूसरे वक्ता वक्ताः डॉ. ए. सी. अग्रवाल, सीनियर फिजिशियन ने बताया कि ऊपरी जठरांत्र असुविधा (Upper Gastrointestinal Discomfort) आज के समय की एक बहुत सामान्य स्वास्थ्य समस्या है, जिसमें पेट में जलन, भारीपन, गैस, उल्टी, मतली या अपच जैसे लक्षण देखे जाते हैं। अक्सर लोग इन लक्षणों को केवल सामान्य एसिडिटी या गैस की समस्या समझकर नज़रअंदाज़ कर देते हैं, जबकि वास्तव में ये शरीर की विभिन्न पाचन प्रणालियों में असंतुलन या किसी गहरी गड़‌बड़ी का संकेत हो सकते हैं।

"Bridging Symptoms and Systems" का मूल अर्थ है केवल लक्षणों को नहीं, बल्कि उनके पीछे छिपे कारणों और प्रणालियों को समझना। जब चिकित्सक रोगी के बताए लक्षणों को उसके शरीर की कार्यप्रणाली, आहार, जीवनशैली और मानसिक स्थिति से जोड़कर देखते हैं, तब ही सही निदान और उपचार संभव हो पाता है।

इस दृष्टिकोण के तहत, ऊपरी जठरांत्र संबंधी असुविधाओं के प्रबंधन में समग्र दृष्टि अपनाने पर बल दिया गया। इसमें उचित जांच जैसे H. pylori टेस्ट, एंडोस्कोपी, और आवश्यकतानुसार दवाओं (PPI, H₂ ब्लॉकर, प्रोकाइनेटिक्स आदि) का चयन शामिल है। साथ ही रोगी को स्वस्थ जीवनशैली, नियमित भोजन, तनाव नियंत्रण और नींद के महत्व के बारे में भी जागरूक किया जाना चाहिए।

जब चिकित्सक लक्षण और प्रणाली के बीच सेतु बनाते हैं, तब वे न केवल तात्कालिक राहत देते हैं बल्कि रोग की जड़ तक पहुँचकर दीर्घकालिक स्वास्थ्य सुधार सुनिश्चित कर सकते हैं। यही "Bridging Symptoms and Systems" का सार है- लक्षणों को समझकर, शरीर की प्रणाली के साथ जोड़ते हुए उपचार की दिशा तय करना।

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