Gastroenterology - Next Life https://nextlifenews.in News Magazine for Healthy Life Mon, 27 Oct 2025 17:04:47 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.8.3 https://nextlifenews.in/wp-content/uploads/2025/09/Copy-of-News-Magazine-for-Healthy-Life-150x150.png Gastroenterology - Next Life https://nextlifenews.in 32 32 CME on “Managing Upper GI Discomfort in Primary Care” https://nextlifenews.in/cme-on-managing-upper-gi-discomfort-in-primary-care/?utm_source=rss&utm_medium=rss&utm_campaign=cme-on-managing-upper-gi-discomfort-in-primary-care Mon, 27 Oct 2025 16:56:43 +0000 https://nextlifenews.in/?p=575

26 Oct 2025, Kanpur: IMA हैडक्वार्टर के निर्देशानुसार IMA Physicians Learning Academy के अंतर्गत “Back to Back Academics" श्रृंखला में एक शैक्षणिक कार्यक्रम (CME) का आयोजन IMA कानपुर शाखा द्वारा आज दिनांक 26 अक्टूबर 2025 दिन रविवार को सायं 6:00 बजे से स्थानः सेमिनार हॉल, आईएमए भवन, कानपुर में किया गया।

इस शैक्षणिक सत्र का उद्देश्य चिकित्सकों को गैस्ट्रोएंटेरोलॉजी से संबंधित नवीनतम जानकारियों से अवगत कराना था।

विषय एवं वक्ताः

1 उम्र के अनुसार जठरांत्र क्रिया-विज्ञान में बदलाव निदान एवं उपचार पर प्रभाव वक्ताः डॉ. शुभ्रा मिश्रा, एम.डी., डी.एम, (गैस्ट्रोएंटेरोलॉजी)

2 लक्षणों और तंत्रों के बीच सेतुः ऊपरी जठरांत्र असुविधा का प्रबंधन वक्ताः डॉ. ए. सी. अग्रवाल, सीनियर फिजिशियन

आईएमए कानपुर के अध्यक्ष डॉ अनुराग मेहरोत्रा ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की तथा आए हुए सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए इन बीमारि की गम्भीरता के विषय में बताया। कार्यक्रम का संचालन डॉ दीपक श्रीवास्तव वैज्ञानिक सचिव आईएमए कानपुर ने किया तथा अंत में धन्यवाद ज्ञापन आईएमए कानपुर की सचिव डॉ शालिनी मोहन ने दिया।

आज के कार्यक्रम के चेयरपर्सन डॉ मयंक मेहरोत्रा Gastroenterologist रीजेंसी हॉस्पिटल कानपुर तथा डॉ पुनीत पूरी, Gastro सर्जन, कानपुर थे तथा कार्यक्रम के मॉडरेटर विकास मिश्रा पूर्व सचिव आईएमए कानपुर थे ।

आज की CME के प्रथम वक्ता डॉ. शुभ्रा मिश्रा, एम.डी., डी.एम. (गैस्ट्रोएंटेरोलॉजी) ने बताया कि चिकित्सा विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि उम्र बढ़ने के साथ शरीर में होने वाले स्वाभाविक परिवर्तन हमारे पाचन तंत्र (गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल सिस्टम) को भी प्रभावित करते हैं। इन बदलावों के कारण बुजुर्गों में पाचन से जुड़ी बीमारियों की पहचान (डायग्नोसिस) और उनका उपचार (ट्रीटमेंट) दोनों अधिक चुनौतीपूर्ण हो जाते हैं।

बढ़ती उम्र के साथ -

लार का स्राव कम हो जाता है, जिससे भोजन निगलने में कठिनाई होती है।
पेट में एसिड का स्राव घटता है, जिससे भोजन का पाचन धीमा पड़ जाता है।
आंतों की गतिशीलता (motility) कम होने से कब्ज़ आम हो जाती है।
लीवर और अग्न्याशय की क्रियाशीलता घटने से दवाओं का असर और पाचन दोनों प्रभावित होते हैं।
इन शारीरिक परिवर्तनों के कारण बुजुर्गों में गैस, बदहजमी, कब्ज़, और पोषण की कमी जैसी समस्याएँ अधिक देखने को मिलती हैं। कई बार पेट की गंभीर बीमारियाँ, जैसे अल्सर या रक्तस्राव, बिना दर्द के केवल कमजोरी या एनीमिया के रूप में सामने आती हैं, जिससे निदान में देर हो सकती है।

प्रथम वक्ता डॉ. शुभ्रा मिश्रा ने सलाह दी है कि बुजुर्ग व्यक्ति नियमित स्वास्थ्य जांच करवाएं।
संतुलित आहार, पर्याप्त पानी, और हल्का व्यायाम अपनी दिनचर्या में शामिल करें।
किसी भी दवा को बिना चिकित्सकीय परामर्श के न लें, क्योंकि उम्र के साथ दवाओं का असर और दुष्प्रभाव दोनों बढ़ सकते हैं।
यह भी कहा कि इस उम्र में पाचन स्वास्थ्य की देखभाल के लिए परिवार और समाज दोनों को जागरूक होना जरूरी है।

CME के दूसरे वक्ता वक्ताः डॉ. ए. सी. अग्रवाल, सीनियर फिजिशियन ने बताया कि ऊपरी जठरांत्र असुविधा (Upper Gastrointestinal Discomfort) आज के समय की एक बहुत सामान्य स्वास्थ्य समस्या है, जिसमें पेट में जलन, भारीपन, गैस, उल्टी, मतली या अपच जैसे लक्षण देखे जाते हैं। अक्सर लोग इन लक्षणों को केवल सामान्य एसिडिटी या गैस की समस्या समझकर नज़रअंदाज़ कर देते हैं, जबकि वास्तव में ये शरीर की विभिन्न पाचन प्रणालियों में असंतुलन या किसी गहरी गड़‌बड़ी का संकेत हो सकते हैं।

"Bridging Symptoms and Systems" का मूल अर्थ है केवल लक्षणों को नहीं, बल्कि उनके पीछे छिपे कारणों और प्रणालियों को समझना। जब चिकित्सक रोगी के बताए लक्षणों को उसके शरीर की कार्यप्रणाली, आहार, जीवनशैली और मानसिक स्थिति से जोड़कर देखते हैं, तब ही सही निदान और उपचार संभव हो पाता है।

इस दृष्टिकोण के तहत, ऊपरी जठरांत्र संबंधी असुविधाओं के प्रबंधन में समग्र दृष्टि अपनाने पर बल दिया गया। इसमें उचित जांच जैसे H. pylori टेस्ट, एंडोस्कोपी, और आवश्यकतानुसार दवाओं (PPI, H₂ ब्लॉकर, प्रोकाइनेटिक्स आदि) का चयन शामिल है। साथ ही रोगी को स्वस्थ जीवनशैली, नियमित भोजन, तनाव नियंत्रण और नींद के महत्व के बारे में भी जागरूक किया जाना चाहिए।

जब चिकित्सक लक्षण और प्रणाली के बीच सेतु बनाते हैं, तब वे न केवल तात्कालिक राहत देते हैं बल्कि रोग की जड़ तक पहुँचकर दीर्घकालिक स्वास्थ्य सुधार सुनिश्चित कर सकते हैं। यही "Bridging Symptoms and Systems" का सार है- लक्षणों को समझकर, शरीर की प्रणाली के साथ जोड़ते हुए उपचार की दिशा तय करना।

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IMA Kanpur organised CME on GERD – From Pills to Plication. https://nextlifenews.in/ima-kanpur-organised-cme-on-gerd-from-pills-to-plication/?utm_source=rss&utm_medium=rss&utm_campaign=ima-kanpur-organised-cme-on-gerd-from-pills-to-plication Sun, 21 Sep 2025 05:40:39 +0000 https://nextlifenews.in/?p=508

20 Sep 2025, Kanpur: इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) कानपुर शाखा द्वारा एक वैज्ञानिक सी.एम.ई. का आयोजन दिनांक 20 सितम्बर 2025, दिन शनिवार को सायं 8:00 बजे जीतेन्द्र कुमार लोहिया सभागार, आईएमए भवन (टेम्पल ऑफ सर्विस), 37/7, परेड, कानपुर में किया गया।



इस कार्यक्रम के मुख्य वक्ता डॉ. पुनीत पुरी, एम.एस., एम.च. (गैस्ट्रो), गैस्ट्रो सर्जन, कानपुर ने "GERD : फ्रॉम पिल्स टू प्लिकेशन" विषय पर अपना व्याख्यान दिया।



वक्ता डॉ पुनीत पूरी ने बताया कि GERD: गैस्ट्रो इसोफेजियल रिफलकस डीज़ीज़


इस बीमारी में आमाश्य में बना Acid और खाना वापिस Food Pipe (Esophagus) में आते हैं। ऐसा LES Lower Esophaged Sphincter) की कमज़ोरी से होता है। मरीज़ को मुख्यता छाती में जलन महसूस होती है। भोजन वापिस मुंह में आता है और कभी कभी नाक से भी निकल आता है। कुछ मरीज़ को लगातार खांसी बनी रहती है। और chest pain भी होती है और वह अनजाने में Chest physician या Cardiologist की सलाह लेते हैं। लम्बा समय तक GERD रहने से food pipe में रुकावट अथवा कैंसर भी बन जाता है। Acid की मात्रा को दवाई द्वारा कम करके इस बीमारी के लक्ष्णों को कम किया जा सकता है।
Laparoscopic anti refleex surgery (Fondoplication) इस बीमारी का Permanent solution है। Life long medicine से भी छुटकारा मिल जाता है और quality of life भी improve होती है।



इस कार्यक्रम के चेयरपर्सन डॉ. पीयूष मिश्रा, वरिष्ठ कंसल्टेंट गैस्ट्रोएन्टेरोलॉजिस्ट, कानपुर एवं डॉ. बृजेंद्र सिंह, वरिष्ठ गैस्ट्रो सर्जन, कानपुर थे।


इस कार्यक्रम के पैनलिस्ट डॉ. ए.सी. अग्रवाल, वरिष्ठ फिजीशियन एवं डायबेटोलॉजिस्ट, कानपुर एवं डॉ. अभिनव सेंगर, गैस्ट्रो सर्जन, ट्यूलिप हॉस्पिटल, कानपुर थे।


कार्यक्रम संयोजक: डॉ. कीर्ति वर्धन सिंह, कानपुर।



इस अवसर पर आईएमए कानपुर की अध्यक्ष डॉ नंदिनी रस्तोगी एवं सचिव डॉ विकास मिश्रा ने आए हुए अतिथियों का स्वागत किया तथा चिकित्सकों एवं सदस्यों से सक्रिय सहभागिता हेतु आभार व्यक्त किया।

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डॉ. युवराज गुलाटी और डॉ विनय कुमार सचान द्वारा IMA कानपुर शाखा की सी०एम०ई० में संबोधन https://nextlifenews.in/ima-6/?utm_source=rss&utm_medium=rss&utm_campaign=ima-6 Sun, 27 Jul 2025 01:42:58 +0000 https://nextlifenews.in/?p=379

26 जुलाई 2025, दिन शनिवार को, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन कानपुर शाखा द्वारा एक "वैज्ञानिक सी०एम०ई०" का आयोजन, "ऑडिटोरियम", आई.एम.ए. भवन (सेवा का मंदिर), 37/7, परेड, कानपुर में, रात्रि 8:00 बजे किया गया।

इस वैज्ञानिक सी०एम०ई० के प्रथम वक्ता डॉ. युवराज गुलाटी, सहायक प्रोफेसर, नेफ्रोलॉजी विभाग, जीएसवीएम एसएस पीजीआई कानपुर ने, :-"सामान्य रोगी में हाइपरयूरेसीमिया में फेबुक्सोस्टैट की भूमिका" विषय पर एवं द्वितीय वक्ता डॉ विनय कुमार सचान, एसोसिएट प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष, गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभाग, जीएसवीएम पीजीआई कानपुर, ने "आईबीएस और आईबीएस रोगी में मेबिवेरिन की भूमिका" विषय पर व्याख्यान प्रस्तुत किए।

प्रथम वक्ता डॉ युवराज गुलाटी ने हायपरयूरिसीमिया में फेबुक्सोस्टेट की भूमिका: (Febuxostat: Uric Acid नियंत्रित करने की एक प्रभावशाली दवा): विषय पर बताया कि बदलती जीवनशैली, असंतुलित खानपान, मोटापा और तनाव के कारण आजकल बड़ी संख्या में लोग हायपरयूरिसीमिया यानी शरीर में यूरिक एसिड की अधिकता से प्रभावित हो रहे हैं। यह स्थिति यदि अनदेखी की जाए तो गठिया (Gout), किडनी स्टोन, और गुर्दे की खराबी जैसी गंभीर बीमारियों का कारण बन सकती है।

इस स्थिति के प्रबंधन में फेबुक्सोस्टेट (Febuxostat) नामक दवा को एक प्रभावशाली विकल्प माना गया है। यह दवा यूरिक एसिड के उत्पादन को कम करके शरीर में इसके स्तर को नियंत्रित करने में मदद करती है।

फेबुक्सोस्टेट कैसे कार्य करता है?
फेबुक्सोस्टेट एक xanthine oxidase inhibitor है, जो यूरिक एसिड बनने की प्रक्रिया को रोकता है। इससे गठिया के लक्षणों में राहत मिलती है और भविष्य में होने वाली जटिलताओं की आशंका कम होती है।
फायदे:
गठिया के तीव्र दर्द से राहत
किडनी पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभाव को कम करता है
पुराने मरीजों में यूरिक एसिड का स्तर स्थिर बनाए रखने में मददगार

ध्यान देने योग्य बातें:
यह दवा डॉक्टर की सलाह से ही लें
नियमित रूप से ब्लड टेस्ट कराते रहें
दवा के साथ पर्याप्त पानी पिएं और भोजन में परहेज रखें
लिवर और हार्ट संबंधी समस्याओं में सावधानी आवश्यक

जन-सामान्य से अनुरोध है कि हायपरयूरिसीमिया के लक्षण जैसे कि जोड़ों में सूजन, दर्द या किडनी की तकलीफ महसूस होने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। समय रहते उपचार कराने पर यह रोग पूरी तरह नियंत्रित किया जा सकता है।

द्वितीय वक्ता डॉ विनय कुमार सचान ने आईबीएस (Irritable Bowel Syndrome) और मेबिवेरिन की भूमिका: विषय पर बताया कि (पेट की परेशानी को हल्के में न लें – जानिए कारण, लक्षण और उपचार)
आज की तेज़ रफ्तार जीवनशैली, अनियमित खानपान, तनाव और शारीरिक गतिविधियों की कमी के कारण बड़ी संख्या में लोग आईबीएस (Irritable Bowel Syndrome) जैसी गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल समस्याओं से ग्रस्त हो रहे हैं।
आईबीएस एक लंबे समय तक रहने वाली आंत की कार्यात्मक बीमारी है, जिसमें रोगी को बार-बार पेट दर्द, गैस, अपच, डायरिया या कब्ज की समस्या होती है। यह बीमारी जीवन के गुणवत्ता पर गंभीर प्रभाव डाल सकती है, हालांकि इसमें कोई संरचनात्मक खराबी नहीं पाई जाती।

आईबीएस के प्रमुख लक्षण:
बार-बार पेट में ऐंठन या मरोड़
दस्त या कब्ज (या दोनों का交विकल्पिक रूप से होना)
पेट में फुलाव या गैस
मल त्याग के बाद राहत महसूस होना
भोजन के बाद पेट खराब होना

मेबिवेरिन (Mebeverine) की भूमिका:
मेबिवेरिन एक एंटीस्पास्मोडिक दवा है, जो आईबीएस से पीड़ित रोगियों के लिए राहतदायक सिद्ध होती है। यह दवा आंतों की मांसपेशियों को शांत करती है, जिससे ऐंठन और दर्द में कमी आती है।

फायदे:
आंत की मरोड़ और ऐंठन में त्वरित राहत
गैस और फुलाव की समस्या में सुधार
जीवनशैली की गुणवत्ता में सुधार
बिना नींद या थकान के साइड इफेक्ट रहित कार्यप्रणाली

सावधानियां:
मेबिवेरिन का सेवन डॉक्टर की सलाह से ही करें
दवा के साथ संतुलित आहार और नियमित व्यायाम अपनाएं
अधिक मिर्च-मसाले, तला हुआ भोजन और तनाव से दूर रहें
लंबे समय तक लक्षण बने रहने पर चिकित्सकीय परामर्श लें
"आईबीएस एक आम लेकिन नजरअंदाज की जाने वाली बीमारी है। यदि समय रहते इसका निदान और उपचार न किया जाए तो यह लंबे समय तक परेशान कर सकती है। मेबिवेरिन जैसे सुरक्षित और प्रभावी उपचार से जीवन में राहत संभव है।"

आई.एम.ए. कानपुर की अध्यक्ष डॉ. नंदिनी रस्तोगी ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की, तथा आए हुए सभी अतिथियों का स्वागत किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ गणेश शंकर वैज्ञानिक सचिव आई एम ए कानपुर ने किया। इस कार्यक्रम के मॉडरेटर डॉ कीर्तिवर्धन सिंह संयुक्त वैज्ञानिक सचिव आईएमए कानपुर थे तथा अंत में धन्यवाद ज्ञापन, आई.एम.ए. कानपुर के सचिव, डॉ. विकास मिश्रा ने दिया।
इस कार्यक्रम के चेयरपर्सन डॉ. अर्चना भदौरिया वरिष्ठ सलाहकार नेफ्रोलॉजिस्ट एवं निदेशक लोटस हॉस्पिटल, कानपुर, डॉ मानसी सिंह कंसल्टेंट नेफ्रोलॉजिस्ट रीजेंसी अस्पताल, कानपुर, डॉ. ए.एस.अरुण खंडूरी वरिष्ठ सलाहकार गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट कानपुर, डॉ. अजीत कुमार रावत सलाहकार गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट एवं निदेशक, प्रथा अस्पताल, कानपुर एवं डॉ. राहुल कपूर कंसल्टेंट फिजिशियन कानपुर थे।

इस कार्यक्रम में, डॉ. ए.सी. अग्रवाल, चेयरमैन वैज्ञानिक सब कमेटी, डॉ. कुणाल सहाय, उपाध्यक्ष, आई.एम.ए. कानपुर एवं डॉ कीर्ति वर्धन सिंह संयुक्त वैज्ञानिक सचिव, प्रमुख रूप से उपस्थित रहे।

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IMA कानपुर द्वारा,CME का आयोजन https://nextlifenews.in/ima-cme/?utm_source=rss&utm_medium=rss&utm_campaign=ima-cme Sun, 29 Jun 2025 03:37:01 +0000 https://nextlifenews.in/?p=296

28 जून, 2024 दिन शनिवार को इंडियन मेडिकल एसोसिएशन कानपुर शाखा द्वारा, एक सी०एम०ई० प्रोग्राम का आयोजन "ऑडिटोरियम, 'सेवा का मंदिर, 37/7, परेड, कानपुर में रात्रि 8:00 बजे किया गया।

इस सी०एम०ई० में "प्रथम सत्र" के वक्ता, डॉ. पीयूष मिश्रा, (गैस्ट्रो) डायरेक्टर & कंसलटेंट गैस्ट्रोएंट्रोलॉजिस्ट सीएन गैस्ट्रोकेयर & कनिष्क हॉस्पिटल, कानपुर, ने "प्रति मलाशय रक्तस्राव के मामले पर दृष्टिकोण सूजन आंत्र रोग के नैदानिक परिप्रेक्ष्य" के विषय पर, "द्वितीय सत्र" की वक्ता, डॉ. सोनल अमित, एम.डी. (पैथो) प्रोफेसर एवं प्रमुख, पैथोलॉजी एवं डीन (शैक्षणिक), ऑटोनोमस स्टेट मेडिकल कॉलेज, अकबरपुर, कानपुर देहात ने "कोलोनिक बायोप्सी पर आईबीडी की हिस्टोपैथोलॉजी पर अपडेट" विषय पर अपने व्याख्यान प्रस्तुत किए एवं "तृतीय सत्र" में, गट फीलिंगः आई.बी.डी. की अंतर्दृष्टि और परिदृश्य विषय पर एक पैनल डिस्कशन किया गया जिसमें वरिष्ठ हिस्टोपैथोलॉजिस्ट एवं पैथवे डायग्नोस्टिक लैब, लाजपत नगर, कानपुर की निर्देशक, डा० आशा अग्रवाल, प्रो० डा० लुबना खान, एवं गेस्ट्रोएनट्रोलॉजिस्ट डा० गौरव चावला, डा० विनय कुमार ने प्रतिभाग किया तथा जिसका सफल संचालन डा० सोनल अमित के द्वारा किया गया।

आई०एम०ए० कानपुर की अध्यक्ष, डॉ. नंदिनी रस्तोगी ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की, तथा आए हुए सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए इन बीमारियों की गम्भीरता के विषय में बताया। कार्यक्रम का संचालन डॉ गणेश शंकर वैज्ञानिक सचिव, आई.एम.ए. कानपुर ने किया एवं आज के विषय पर प्रकाश डॉ ए. सी. अग्रवाल, चेयरमैन वैज्ञानिक सब कमेटी ने दिया। तथा अंत में धन्यवाद ज्ञापन आई.एम.ए. कानपुर के सचिव, डॉ. विकास मिश्रा ने दिया।

वक्ताओं ने बताया कि, वर्तमान जीवन शैली एवं खान-पान में बढ़तें पश्चात्य प्रभाव के कारण चितांजनक रूप से बढ़ती हुई आई०बी०डी० की बीमारियों जैसे कि अल्सरेटिव कोलाइटिस एवं क्राहन्स डिसीज़ के रोगियों की संख्या मैं बढोत्री हो रही है, जिस्में आंतों की सूजन की बीमारी में महत्वपूर्ण बदलाव हुए हैं जो कि आज भारत में भी आधुनिक जीवनशैली के कारण बढ़ रही है। कोलन बायोप्सी की हिस्टोपैथोलॉजी जाँच के महत्व के बारे में बताया गया। इस व्याख्यान में आई०बी०डी० से सम्बन्धित नवीन पहलुओं पर प्रकाश डाला गया, जिससें न केवल सही डायग्नोसिस होकर उसका उचित निदान हो सकेगा वरन् उनके गम्भीर दुष्परिणामों जैसे की मल में अत्याधिक रक्तस्त्राव और कोलन कैंसर से भी बचा जा सकेगा।

प्रथम सत्र के चेयरपर्सन डा० राहुल गुप्ता, डॉ. महेंद्र सिंह, एमडी (पैथो) कानपुर थे।

द्वितीय सत्र के चेयरपर्सन डॉ. एस.एन. सिंह एम.डी. (पैथी), डॉ. प्रवीण सारस्वत, एम.डी. (पैथो), डॉ. (प्रोफेसर) विकास मिश्रा, एम.डी. (माइक्रोबायोलाजी) कानपुर थे।

इस कार्यक्रम में डॉ. कुणाल सहाय, उपाध्यक्ष, आईएमए कानपुर एवं डॉ कीर्ति वर्धन सिंह संयुक्त वैज्ञानिक सचिव, प्रमुख रूप से उपस्थित रहे।

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