Uncategorized - Next Life https://nextlifenews.in News Magazine for Healthy Life Mon, 27 Oct 2025 17:04:47 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.8.3 https://nextlifenews.in/wp-content/uploads/2025/09/Copy-of-News-Magazine-for-Healthy-Life-150x150.png Uncategorized - Next Life https://nextlifenews.in 32 32 CME on “Managing Upper GI Discomfort in Primary Care” https://nextlifenews.in/cme-on-managing-upper-gi-discomfort-in-primary-care/?utm_source=rss&utm_medium=rss&utm_campaign=cme-on-managing-upper-gi-discomfort-in-primary-care Mon, 27 Oct 2025 16:56:43 +0000 https://nextlifenews.in/?p=575

26 Oct 2025, Kanpur: IMA हैडक्वार्टर के निर्देशानुसार IMA Physicians Learning Academy के अंतर्गत “Back to Back Academics" श्रृंखला में एक शैक्षणिक कार्यक्रम (CME) का आयोजन IMA कानपुर शाखा द्वारा आज दिनांक 26 अक्टूबर 2025 दिन रविवार को सायं 6:00 बजे से स्थानः सेमिनार हॉल, आईएमए भवन, कानपुर में किया गया।

इस शैक्षणिक सत्र का उद्देश्य चिकित्सकों को गैस्ट्रोएंटेरोलॉजी से संबंधित नवीनतम जानकारियों से अवगत कराना था।

विषय एवं वक्ताः

1 उम्र के अनुसार जठरांत्र क्रिया-विज्ञान में बदलाव निदान एवं उपचार पर प्रभाव वक्ताः डॉ. शुभ्रा मिश्रा, एम.डी., डी.एम, (गैस्ट्रोएंटेरोलॉजी)

2 लक्षणों और तंत्रों के बीच सेतुः ऊपरी जठरांत्र असुविधा का प्रबंधन वक्ताः डॉ. ए. सी. अग्रवाल, सीनियर फिजिशियन

आईएमए कानपुर के अध्यक्ष डॉ अनुराग मेहरोत्रा ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की तथा आए हुए सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए इन बीमारि की गम्भीरता के विषय में बताया। कार्यक्रम का संचालन डॉ दीपक श्रीवास्तव वैज्ञानिक सचिव आईएमए कानपुर ने किया तथा अंत में धन्यवाद ज्ञापन आईएमए कानपुर की सचिव डॉ शालिनी मोहन ने दिया।

आज के कार्यक्रम के चेयरपर्सन डॉ मयंक मेहरोत्रा Gastroenterologist रीजेंसी हॉस्पिटल कानपुर तथा डॉ पुनीत पूरी, Gastro सर्जन, कानपुर थे तथा कार्यक्रम के मॉडरेटर विकास मिश्रा पूर्व सचिव आईएमए कानपुर थे ।

आज की CME के प्रथम वक्ता डॉ. शुभ्रा मिश्रा, एम.डी., डी.एम. (गैस्ट्रोएंटेरोलॉजी) ने बताया कि चिकित्सा विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि उम्र बढ़ने के साथ शरीर में होने वाले स्वाभाविक परिवर्तन हमारे पाचन तंत्र (गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल सिस्टम) को भी प्रभावित करते हैं। इन बदलावों के कारण बुजुर्गों में पाचन से जुड़ी बीमारियों की पहचान (डायग्नोसिस) और उनका उपचार (ट्रीटमेंट) दोनों अधिक चुनौतीपूर्ण हो जाते हैं।

बढ़ती उम्र के साथ -

लार का स्राव कम हो जाता है, जिससे भोजन निगलने में कठिनाई होती है।
पेट में एसिड का स्राव घटता है, जिससे भोजन का पाचन धीमा पड़ जाता है।
आंतों की गतिशीलता (motility) कम होने से कब्ज़ आम हो जाती है।
लीवर और अग्न्याशय की क्रियाशीलता घटने से दवाओं का असर और पाचन दोनों प्रभावित होते हैं।
इन शारीरिक परिवर्तनों के कारण बुजुर्गों में गैस, बदहजमी, कब्ज़, और पोषण की कमी जैसी समस्याएँ अधिक देखने को मिलती हैं। कई बार पेट की गंभीर बीमारियाँ, जैसे अल्सर या रक्तस्राव, बिना दर्द के केवल कमजोरी या एनीमिया के रूप में सामने आती हैं, जिससे निदान में देर हो सकती है।

प्रथम वक्ता डॉ. शुभ्रा मिश्रा ने सलाह दी है कि बुजुर्ग व्यक्ति नियमित स्वास्थ्य जांच करवाएं।
संतुलित आहार, पर्याप्त पानी, और हल्का व्यायाम अपनी दिनचर्या में शामिल करें।
किसी भी दवा को बिना चिकित्सकीय परामर्श के न लें, क्योंकि उम्र के साथ दवाओं का असर और दुष्प्रभाव दोनों बढ़ सकते हैं।
यह भी कहा कि इस उम्र में पाचन स्वास्थ्य की देखभाल के लिए परिवार और समाज दोनों को जागरूक होना जरूरी है।

CME के दूसरे वक्ता वक्ताः डॉ. ए. सी. अग्रवाल, सीनियर फिजिशियन ने बताया कि ऊपरी जठरांत्र असुविधा (Upper Gastrointestinal Discomfort) आज के समय की एक बहुत सामान्य स्वास्थ्य समस्या है, जिसमें पेट में जलन, भारीपन, गैस, उल्टी, मतली या अपच जैसे लक्षण देखे जाते हैं। अक्सर लोग इन लक्षणों को केवल सामान्य एसिडिटी या गैस की समस्या समझकर नज़रअंदाज़ कर देते हैं, जबकि वास्तव में ये शरीर की विभिन्न पाचन प्रणालियों में असंतुलन या किसी गहरी गड़‌बड़ी का संकेत हो सकते हैं।

"Bridging Symptoms and Systems" का मूल अर्थ है केवल लक्षणों को नहीं, बल्कि उनके पीछे छिपे कारणों और प्रणालियों को समझना। जब चिकित्सक रोगी के बताए लक्षणों को उसके शरीर की कार्यप्रणाली, आहार, जीवनशैली और मानसिक स्थिति से जोड़कर देखते हैं, तब ही सही निदान और उपचार संभव हो पाता है।

इस दृष्टिकोण के तहत, ऊपरी जठरांत्र संबंधी असुविधाओं के प्रबंधन में समग्र दृष्टि अपनाने पर बल दिया गया। इसमें उचित जांच जैसे H. pylori टेस्ट, एंडोस्कोपी, और आवश्यकतानुसार दवाओं (PPI, H₂ ब्लॉकर, प्रोकाइनेटिक्स आदि) का चयन शामिल है। साथ ही रोगी को स्वस्थ जीवनशैली, नियमित भोजन, तनाव नियंत्रण और नींद के महत्व के बारे में भी जागरूक किया जाना चाहिए।

जब चिकित्सक लक्षण और प्रणाली के बीच सेतु बनाते हैं, तब वे न केवल तात्कालिक राहत देते हैं बल्कि रोग की जड़ तक पहुँचकर दीर्घकालिक स्वास्थ्य सुधार सुनिश्चित कर सकते हैं। यही "Bridging Symptoms and Systems" का सार है- लक्षणों को समझकर, शरीर की प्रणाली के साथ जोड़ते हुए उपचार की दिशा तय करना।

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Press Conference by IMA Kanpur on World Mental Health Day https://nextlifenews.in/press-conference-by-ima-kanpur-on-world-mental-health-day/?utm_source=rss&utm_medium=rss&utm_campaign=press-conference-by-ima-kanpur-on-world-mental-health-day Fri, 10 Oct 2025 09:43:34 +0000 https://nextlifenews.in/?p=541

10 Oct 2025, Kanpur : विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की अध्यक्ष डॉ. नंदिनी रस्तोगी ने कहा कि विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस 2025 का विषय "सेवाओं तक पहुँच - आपदाओं और आपात स्थितियों में मानसिक स्वास्थ्य" है। इस विषय की घोषणा विश्व मानसिक स्वास्थ्य महासंघ (WFMH) द्वारा की गई थी, जिसने 1992 में इस दिवस की शुरुआत की थी।


विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस हर साल 10 अक्टूबर को मनाया जाता है। यह अच्छे मानसिक स्वास्थ्य के महत्व और अच्छे मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने और उसमें निवेश करने की आवश्यकता की याद दिलाता है। विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस एक सशक्त अनुस्मारक है कि मानसिक स्वास्थ्य के बिना स्वास्थ्य अधूरा है। इस वर्ष का अभियान मानवीय आपात स्थितियों से प्रभावित लोगों के मानसिक स्वास्थ्य और मनोसामाजिक आवश्यकताओं का समर्थन करने की तत्काल आवश्यकता पर केंद्रित है।


2025 विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस का विषय "सेवाओं तक पहुँच - आपदाओं और आपात स्थितियों में मानसिक स्वास्थ्य" है, जो प्राकृतिक आपदाओं, संघर्षों, महामारियों और अन्य आपात स्थितियों जैसे संकट के समय में मानसिक स्वास्थ्य सहायता की उपलब्धता में सुधार और उसे सुनिश्चित करने की महत्वपूर्ण आवश्यकता पर प्रकाश डालता है। यह विषय वैश्विक अस्थिरता के समय में लोगों के लिए अपने मानसिक स्वास्थ्य की रक्षा करने के महत्व पर प्रकाश डालता है। विश्व मानसिक स्वास्थ्य महासंघ (WFMH) द्वारा घोषित यह वैश्विक विषय, सरकारों और संगठनों से व्यक्तियों और समुदायों की सुरक्षा के लिए आपात स्थितियों के दौरान शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य देखभाल को भी प्राथमिकता देने का आह्वान करता है।


भारतीय चिकित्सा संघ के माननीय सचिव प्रोफेसर डॉ. विकास मिश्रा ने कहा कि इस वर्ष के विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस पर, हम संकटों और संघर्षों की खबरों के बार-बार सामने आने के मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। यह विषय वर्तमान वैश्विक स्थिति के लिए अत्यंत उपयुक्त प्रतीत होता है। विश्व समाचार अनगिनत आपदाओं और आपात स्थितियों की रिपोर्ट करते हैं। ये आपदाएँ और आपात स्थितियाँ मानव मानसिक स्वास्थ्य को कैसे प्रभावित कर रही हैं? क्या मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए, यदि नहीं भी तो, सेवाओं तक पर्याप्त पहुँच है?


यदि आपदाएँ और आपात स्थितियाँ इतनी व्यापक हैं, तो ये घटनाएँ मानव स्वभाव में गहराई से निहित होनी चाहिए। इन मूलभूत प्रकृतियों के प्रतिकूल प्रभावों का मुकाबला करने के लिए, हमें मानव स्वभाव की अन्य मूलभूत प्रकृतियों को सक्रिय करने की आवश्यकता है जो दूसरों के लिए सहायता, उपचार और देखभाल को सुगम बनाती हैं।



विश्व मानसिक स्वास्थ्य महासंघ (WFMH) मानव के लिए बेहतर मानसिक स्वास्थ्य प्राप्त करने के लिए प्रतिबद्ध है। वैश्विक मुद्दों से निपटने के लिए, WFMH को अपने राष्ट्रीय और वैश्विक भागीदारों के साथ सहयोग करने की आवश्यकता है।
2025 विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस के प्रमुख पहलू :


1-संकटों पर ध्यान: यह विषय विशेष रूप से आपदाओं और आपात स्थितियों के दौरान सामने आने वाली गंभीर मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियों पर केंद्रित है।


2-सहायता प्रणालियों को सुदृढ़ बनाना: यह संकट की स्थितियों में परामर्श, चिकित्सा और समुदाय-आधारित सेवाओं सहित मजबूत मानसिक स्वास्थ्य सहायता प्रणालियों की आवश्यकता पर बल देता है।


3-सहयोग: यह विषय सरकारों, स्वास्थ्य सेवा प्रणालियों, मानवीय संगठनों और समुदायों के बीच सहयोग को प्रोत्साहित करता है ताकि मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को अधिक सुलभ और प्राथमिकता दी जा सके।


4-सार्वभौमिक पहुँच: इसका लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि संकट के समय में, मानसिक स्वास्थ्य सेवाएँ सभी के लिए उपलब्ध और सुलभ हों, चाहे उनका स्थान या परिस्थितियाँ कुछ भी हों।
रामा मेडिकल कॉलेज के प्रोफेसर एवं मनोरोग विभागाध्यक्ष मधुकर कटियार ने बताया कि यह विषय संकट के समय में मानसिक स्वास्थ्य सहायता को मज़बूत करने की तत्काल आवश्यकता पर प्रकाश डालता है, जैसे:
1-प्राकृतिक आपदाएँ
2-संघर्ष
3-महामारी
4-अन्य आपात स्थितियाँ ।


इस विषय पर ध्यान केंद्रित करके, WFMH और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) सरकारों, स्वास्थ्य प्रणालियों और सहायता समूहों से शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को भी आसानी से उपलब्ध और प्राथमिकता देने का आह्वान कर रहे हैं।


यह विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि दुनिया भर में लाखों लोग ऐसी घटनाओं के दौरान भावनात्मक आघात और दीर्घकालिक मनोवैज्ञानिक प्रभावों का अनुभव करते हैं। प्राकृतिक आपदाएँ, संघर्ष और सार्वजनिक स्वास्थ्य आपात स्थितियाँ भावनात्मक संकट का कारण बनती हैं, जहाँ हर पाँच में से एक व्यक्ति मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति से गुज़रता है। ऐसे संकटों के दौरान व्यक्तियों के मानसिक स्वास्थ्य का समर्थन करना न केवल महत्वपूर्ण है - बल्कि यह जीवन बचाता है, लोगों को इससे निपटने की शक्ति देता है, उन्हें न केवल व्यक्तिगत रूप से, बल्कि समुदायों के रूप में भी स्वस्थ होने और पुनर्निर्माण के लिए जगह देता है। इसलिए सरकारी अधिकारियों, स्वास्थ्य और सामाजिक देखभाल प्रदाताओं, स्कूल कर्मचारियों और सामुदायिक समूहों सहित सभी के लिए एक साथ आना आवश्यक है। साथ मिलकर काम करके, हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि सबसे कमज़ोर लोगों को उनकी ज़रूरत के अनुसार सहायता मिले और साथ ही सभी की भलाई की रक्षा भी हो।


साक्ष्य और समुदाय-आधारित हस्तक्षेपों में निवेश करके, हम तत्काल मानसिक स्वास्थ्य आवश्यकताओं को पूरा कर सकते हैं, दीर्घकालिक सुधार को बढ़ावा दे सकते हैं, और लोगों और समुदायों को अपने जीवन का पुनर्निर्माण करने और फलने-फूलने के लिए सशक्त बना सकते हैं।
दुनिया इस समय एक कठिन दौर से गुज़र रही है और भले ही आप घटनाओं से सीधे तौर पर प्रभावित न हों, फिर भी इससे निपटना बहुत मुश्किल लग सकता है। मदद माँगना ठीक है, चाहे आप या कोई और किसी भी स्थिति से गुज़र रहा हो।


हो सकता है कि हमारे पास वैश्विक स्तर पर अपनी इच्छानुसार सब कुछ प्रभावित करने या बदलने की शक्ति न हो। लेकिन कुछ चीज़ें हैं जो हम खुद को और दूसरों को वर्तमान घटनाओं के सामने अभिभूत और निराश महसूस करने से बचाने के लिए कर सकते हैं।


इस विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस पर, शामिल होने के कई तरीके हैं।

प्रोफेसर डॉ. मधुकर कटियार ने आगे कहा कि दुनिया भर में लाखों लोग आपदाओं और आपात स्थितियों से प्रभावित हुए हैं और हैं। आपदा प्रभावित लगभग एक-तिहाई लोगों को मानसिक स्वास्थ्य के संदर्भ में गंभीर परिणामों का सामना करना पड़ सकता है। आपदाओं और आपात स्थितियों के कारण होने वाले मानसिक स्वास्थ्य विकारों के लिए पेशेवरों के विशेष कौशल, ज्ञान और योग्यता की आवश्यकता होती है। अंतर्राष्ट्रीय दिशानिर्देश और रिपोर्ट आपात स्थितियों के दौरान मानसिक स्वास्थ्य और मनोसामाजिक सहायता (एमएचपीएसएस) प्रदान करने के लिए विभिन्न गतिविधियों, सहायता रूपों और कार्यों की अनुशंसा करते हैं। आपात स्थितियों में मानसिक स्वास्थ्य सहायता के लिए पेशेवरों और अन्य लोगों द्वारा "एक व्यापक पुनर्विचार" की आवश्यकता होती है। आपात स्थितियों और आपदाओं के प्रभाव विविध और बहुआयामी होते हैं। प्रभावित लोगों और तैनात सहायकों दोनों के लिए।



मानसिक रोग विशेषज्ञ डॉ गणेश शंकर ने बताया कि इस वर्ष का विषय यह भी उजागर करता है कि ये ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ मानसिक स्वास्थ्य विकार अधिक बार हो सकते हैं, इनमें से कई प्रभावित लोगों को पेशेवर मानसिक स्वास्थ्य सहायता की आवश्यकता है, और आवश्यक सहायता उन तक पहुँचनी चाहिए। डब्ल्यूएफएमएच का यह भी दायित्व है कि वह राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर राजनीतिक नेताओं, सामाजिक नेताओं और अध्यक्षों से इन लोगों के लिए पर्याप्त सहायता का अनुरोध करे, ताकि लोगों को आवश्यक पेशेवर सहायता सर्वोत्तम संभव तरीके से प्राप्त हो सके। इसके लिए सभी प्रकार के संकटों के लिए अग्रिम योजना बनाने और शिक्षा, आगे के प्रशिक्षण तथा मानसिक स्वास्थ्य ज्ञान एवं दक्षताओं के क्षेत्रों में अग्रिम कार्यान्वयन की आवश्यकता होती है। लगातार आघात के संपर्क में रहना, साथ ही अत्यधिक और चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में सहायता प्रदान करने का दबाव, सभी पेशेवरों के मानसिक स्वास्थ्य पर भारी बोझ डाल सकता है। इसलिए डब्ल्यूएफएमएच इन कर्मचारियों पर विशेष ध्यान देने और सुरक्षा प्रदान करने का आह्वान करता है।


रामा मेडिकल कॉलेज के प्रसूति एवं स्त्री रोग विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. नीरजा कटियार ने कहा कि आपात स्थितियों से प्रभावित लगभग सभी लोग मनोवैज्ञानिक संकट का अनुभव करते हैं, जो आमतौर पर समय के साथ कम हो जाता है। पिछले 10 वर्षों में युद्ध या संघर्ष का अनुभव करने वाले पाँच में से एक व्यक्ति (22%) को अवसाद, चिंता, अभिघातज के बाद का तनाव विकार, द्विध्रुवी विकार या सिज़ोफ्रेनिया है।• आपात स्थितियाँ मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को महत्वपूर्ण रूप से बाधित करती हैं और गुणवत्तापूर्ण देखभाल की उपलब्धता को कम करती हैं।• गंभीर मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों वाले लोग आपात स्थितियों के दौरान विशेष रूप से असुरक्षित होते हैं और उन्हें मानसिक स्वास्थ्य देखभाल और अन्य बुनियादी ज़रूरतों तक पहुँच की आवश्यकता होती है।हर साल, लाखों लोग सशस्त्र संघर्षों और प्राकृतिक आपदाओं जैसी आपात स्थितियों से प्रभावित होते हैं। ये संकट परिवारों, आजीविका और आवश्यक सेवाओं को बाधित करते हैं और मानसिक स्वास्थ्य पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालते हैं। लगभग सभी प्रभावित लोग मनोवैज्ञानिक संकट का अनुभव करते हैं। कुछ लोग आगे चलकर अवसाद या अभिघातज के बाद के तनाव विकार जैसी मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों का विकास करते हैं।आपात स्थितियाँ मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों और गरीबी एवं भेदभाव जैसी सामाजिक समस्याओं को और बदतर बना सकती हैं। ये नई समस्याओं को भी जन्म दे सकती हैं, जैसे परिवार का अलग होना और हानिकारक पदार्थों का सेवन।


मानसिक रोग विशेषज्ञ डॉ. संजय महेंद्रु ने कहा अंतर्राष्ट्रीय दिशानिर्देश आपात स्थितियों के दौरान मानसिक स्वास्थ्य और मनोसामाजिक सहायता (एमएचपीएसएस) प्रदान करने के लिए विभिन्न गतिविधियों की सिफारिश करते हैं, जिनमें सामुदायिक स्वयं सहायता और संचार से लेकर मनोवैज्ञानिक प्राथमिक चिकित्सा और नैदानिक मानसिक स्वास्थ्य देखभाल तक शामिल हैं। आपदा जोखिम न्यूनीकरण के साथ तैयारी और एकीकरण प्रभावों को कम करने के लिए आवश्यक हैं। देश आपातकालीन स्थितियों का उपयोग मानसिक स्वास्थ्य में निवेश करने के अवसर के रूप में भी कर सकते हैं, तथा प्राप्त होने वाली बढ़ी हुई सहायता और ध्यान का लाभ उठाकर दीर्घावधि के लिए बेहतर देखभाल प्रणालियां विकसित कर सकते हैं।

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IMA कानपुर और मेदांता हॉस्पिटल लखनऊ के संयुक्त तत्वाधान मे “वैज्ञानिक सी०एम०ई०” का आयोजन https://nextlifenews.in/ima-3/?utm_source=rss&utm_medium=rss&utm_campaign=ima-3 Sat, 12 Jul 2025 15:32:54 +0000 https://nextlifenews.in/?p=340

12 जुलाई 2025, कानपुर । आज IMA कानपुर शाखा और मेदांता हॉस्पिटल लखनऊ के संयुक्त तत्वाधान मे, एक "वैज्ञानिक सी०एम०ई०" का आयोजन, "ऑडिटोरियम", आई.एम.ए. भवन (सेवा का मंदिर), 37/7, परेड, कानपुर में, रात्रि 8:00 बजे किया गया।

इस वैज्ञानिक सी०एम०ई० मे प्रथम वक्ता डॉ. ए.के. ठक्कर (निदेशक - न्यूरोलॉजी विभाग, मेदांता अस्पताल, लखनऊ), द्वितीय वक्ता डॉ. रवि शंकर (निदेशक - न्यूरोसर्जरी विभाग मेदांता अस्पताल, लखनऊ) एवं तृतीय वक्ता डॉ. रोहित अग्रवाल (निदेशक - इंटरवेंशनल रेडियोलॉजी मेदांता अस्पताल, लखनऊ) ने, "व्यापक स्ट्रोक प्रबंधन: शुरुआत से लेकर रिकवरी तक (Comprehensive Stroke Management - From Onset To Recovery)" विषय पर अपने व्याख्यान प्रस्तुत किए।

वक्ताओं ने बताया कि:

स्ट्रोक (Brain Attack):
स्ट्रोक (या ब्रेन अटैक) एक गंभीर, लेकिन समय पर पहचानी जाए, तो काबू में आने वाली चिकित्सा स्थिति है। यदि लक्षणों को तुरंत पहचाना जाए और शीघ्र उपचार शुरू हो, तो न केवल जीवन बचाया जा सकता है, बल्कि रोगी फिर से सामान्य जीवन जी सकता है।

स्ट्रोक क्या होता है?
जब मस्तिष्क को रक्त पहुंचाने वाली रक्तवाहिनी, अवरुद्ध हो जाती है (Ischemic Stroke) या फट जाती है (Hemorrhagic Stroke), तब मस्तिष्क की कोशिकाएं ऑक्सीजन के अभाव में मरने लगती हैं — यही स्थिति स्ट्रोक कहलाती है।

स्ट्रोक के लक्षणों की पहचान (ज़रूरी): स्ट्रोक के लक्षण आमतौर पर अचानक होते हैंl
•चेहरे का एक तरफ झुक जाना l
•एक हाथ या पैर में कमजोरी या सुन्नता l
•बोलने में दिक्कत या अस्पष्ट शब्द l
•चक्कर आना या संतुलन की कमी l
•आंखों की दृष्टि अचानक धुंधली होना l


याद रखें “BE FAST” फार्मूला:
B – Balance (संतुलन गड़बड़ाना)
E – Eyes (दृष्टि में परिवर्तन) l
F – Face (चेहरे की गति असमान) l
A – Arms (बांहें उठाने में असमर्थता) l
S – Speech (बोलने में दिक्कत) l
T – Time (समय न गँवाएं – तुरंत अस्पताल पहुँचें) l

इलाज और पुनर्वास – हर कदम अहम:
पहले 4.5 घंटे में इलाज (Golden Window):
थ्रोम्बोलाइटिक दवाएं रक्त प्रवाह बहाल करती हैं।

24 घंटे के अंदर विशेष देखभाल:
सघन निगरानी, स्कैन और न्यूरोलॉजिस्ट की सलाह ज़रूरी।

पुनर्वास (Recovery):
फिजियोथेरेपी, स्पीच थैरेपी और भावनात्मक सहयोग से रोगी सामान्य जीवन की ओर लौट सकता है।

कैसे करें बचाव: •उच्च रक्तचाप, डायबिटीज, कोलेस्ट्रॉल का नियमित परीक्षण l
•धूम्रपान और शराब से दूरी l
•रोज़ाना व्यायाम और संतुलित आहार l
•मानसिक तनाव से मुक्ति l

जनता से अपील:
स्ट्रोक एक "साइलेंट किलर" है, लेकिन समय पर जानकारी और इलाज से, इसे रोका जा सकता है। परिवार के हर सदस्य को इसके लक्षणों की पहचान और प्राथमिक कदमों की जानकारी होनी चाहिए।
"समय पर पहचानें, समय पर उपचार लें — स्ट्रोक से जीवन की रक्षा करें।"

आज के विषय पर प्रकाश डॉ. नवनीत कुमार (वरिष्ठ न्यूरोलॉजिस्ट,पूर्व प्राचार्य एवं डीन, जी.एस.वी.एम. मेडिकल कॉलेज, कानपुर) ने दिया एवं आज के वक्ताओं का परिचय, प्रो. डॉ. मनीष सिंह (विभागाध्यक्ष, न्यूरोसर्जरी विभाग, जी.एस.वी.एम. मेडिकल कॉलेज, कानपुर) ने दिया l

आई.एम.ए. कानपुर की अध्यक्ष डॉ. नंदिनी रस्तोगी ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की, तथा आए हुए सभी अतिथियों का स्वागत किया। कार्यक्रम का संचालन तथा अंत में धन्यवाद ज्ञापन, आई.एम.ए. कानपुर के सचिव, डॉ. विकास मिश्रा ने दिया।

इस कार्यक्रम के चेयरपर्सन डॉ. नवनीत कुमार (वरिष्ठ न्यूरोलॉजिस्ट,पूर्व प्राचार्य एवं डीन, जी.एस.वी.एम. मेडिकल कॉलेज, कानपुर), प्रो. डॉ. मनीष सिंह (विभागाध्यक्ष, न्यूरोसर्जरी विभाग, जी.एस.वी.एम. मेडिकल कॉलेज, कानपुर), डॉ. अमित गुप्ता (वरिष्ठ न्यूरोसर्जन, कानपुर) एवं डॉ. पुनीत दीक्षित (वरिष्ठ न्यूरोफिजिशियन, न्यूरो एवं नेत्र क्लिनिक, कानपुर थे।

इस कार्यक्रम में, डॉ. ए.सी. अग्रवाल, चेयरमैन वैज्ञानिक सब कमेटी, डॉ. कुणाल सहाय, उपाध्यक्ष, आई.एम.ए. कानपुर एवं डॉ कीर्ति वर्धन सिंह संयुक्त वैज्ञानिक सचिव, प्रमुख रूप से उपस्थित रहे।

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IMA कानपुर द्वारा,CME का आयोजन https://nextlifenews.in/ima-cme/?utm_source=rss&utm_medium=rss&utm_campaign=ima-cme Sun, 29 Jun 2025 03:37:01 +0000 https://nextlifenews.in/?p=296

28 जून, 2024 दिन शनिवार को इंडियन मेडिकल एसोसिएशन कानपुर शाखा द्वारा, एक सी०एम०ई० प्रोग्राम का आयोजन "ऑडिटोरियम, 'सेवा का मंदिर, 37/7, परेड, कानपुर में रात्रि 8:00 बजे किया गया।

इस सी०एम०ई० में "प्रथम सत्र" के वक्ता, डॉ. पीयूष मिश्रा, (गैस्ट्रो) डायरेक्टर & कंसलटेंट गैस्ट्रोएंट्रोलॉजिस्ट सीएन गैस्ट्रोकेयर & कनिष्क हॉस्पिटल, कानपुर, ने "प्रति मलाशय रक्तस्राव के मामले पर दृष्टिकोण सूजन आंत्र रोग के नैदानिक परिप्रेक्ष्य" के विषय पर, "द्वितीय सत्र" की वक्ता, डॉ. सोनल अमित, एम.डी. (पैथो) प्रोफेसर एवं प्रमुख, पैथोलॉजी एवं डीन (शैक्षणिक), ऑटोनोमस स्टेट मेडिकल कॉलेज, अकबरपुर, कानपुर देहात ने "कोलोनिक बायोप्सी पर आईबीडी की हिस्टोपैथोलॉजी पर अपडेट" विषय पर अपने व्याख्यान प्रस्तुत किए एवं "तृतीय सत्र" में, गट फीलिंगः आई.बी.डी. की अंतर्दृष्टि और परिदृश्य विषय पर एक पैनल डिस्कशन किया गया जिसमें वरिष्ठ हिस्टोपैथोलॉजिस्ट एवं पैथवे डायग्नोस्टिक लैब, लाजपत नगर, कानपुर की निर्देशक, डा० आशा अग्रवाल, प्रो० डा० लुबना खान, एवं गेस्ट्रोएनट्रोलॉजिस्ट डा० गौरव चावला, डा० विनय कुमार ने प्रतिभाग किया तथा जिसका सफल संचालन डा० सोनल अमित के द्वारा किया गया।

आई०एम०ए० कानपुर की अध्यक्ष, डॉ. नंदिनी रस्तोगी ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की, तथा आए हुए सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए इन बीमारियों की गम्भीरता के विषय में बताया। कार्यक्रम का संचालन डॉ गणेश शंकर वैज्ञानिक सचिव, आई.एम.ए. कानपुर ने किया एवं आज के विषय पर प्रकाश डॉ ए. सी. अग्रवाल, चेयरमैन वैज्ञानिक सब कमेटी ने दिया। तथा अंत में धन्यवाद ज्ञापन आई.एम.ए. कानपुर के सचिव, डॉ. विकास मिश्रा ने दिया।

वक्ताओं ने बताया कि, वर्तमान जीवन शैली एवं खान-पान में बढ़तें पश्चात्य प्रभाव के कारण चितांजनक रूप से बढ़ती हुई आई०बी०डी० की बीमारियों जैसे कि अल्सरेटिव कोलाइटिस एवं क्राहन्स डिसीज़ के रोगियों की संख्या मैं बढोत्री हो रही है, जिस्में आंतों की सूजन की बीमारी में महत्वपूर्ण बदलाव हुए हैं जो कि आज भारत में भी आधुनिक जीवनशैली के कारण बढ़ रही है। कोलन बायोप्सी की हिस्टोपैथोलॉजी जाँच के महत्व के बारे में बताया गया। इस व्याख्यान में आई०बी०डी० से सम्बन्धित नवीन पहलुओं पर प्रकाश डाला गया, जिससें न केवल सही डायग्नोसिस होकर उसका उचित निदान हो सकेगा वरन् उनके गम्भीर दुष्परिणामों जैसे की मल में अत्याधिक रक्तस्त्राव और कोलन कैंसर से भी बचा जा सकेगा।

प्रथम सत्र के चेयरपर्सन डा० राहुल गुप्ता, डॉ. महेंद्र सिंह, एमडी (पैथो) कानपुर थे।

द्वितीय सत्र के चेयरपर्सन डॉ. एस.एन. सिंह एम.डी. (पैथी), डॉ. प्रवीण सारस्वत, एम.डी. (पैथो), डॉ. (प्रोफेसर) विकास मिश्रा, एम.डी. (माइक्रोबायोलाजी) कानपुर थे।

इस कार्यक्रम में डॉ. कुणाल सहाय, उपाध्यक्ष, आईएमए कानपुर एवं डॉ कीर्ति वर्धन सिंह संयुक्त वैज्ञानिक सचिव, प्रमुख रूप से उपस्थित रहे।

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